Thursday, April 23, 2015

जीने की आदत मुझे कहा ले आई है। 
यहाँ कोई नही, दूर तक तन्हाई है। 
सिक्को की खनक में उलझा हूँ बेइंतेहा। 
संग रूह है ना परछाई है। 

हर तरफ शोर है फिर भी है सन्नाटे। 
वक़्त की गिरह में फूल काम ज़्यादा है कांटे। 
साँसों की डोर कमज़ोर सी लगती है। 
जबसे हमने अपनों से निगाह चुराई है। 
सिक्को की खनक में उलझा हूँ बेइंतेहा। 
संग रूह है ना परछाई है।

मैं निकला था सुकून की तलाश में, 
सुकून ना है यहाँ हर आँख मुरझाई है 
 तनहा है हर शख्श यहाँ अपनी ही खोज में। 
पलकों पे हर एक की यादो की नरमाई है। 
सिक्को की खनक में उलझा हूँ बेइंतेहा। 
संग रूह है ना परछाई है। 

जीने की आदत मुझे कहा ले आई है। 
यहाँ कोई नही, दूर तक तन्हाई है। 
सिक्को की खनक में उलझा हूँ बेइंतेहा। 
संग रूह है ना परछाई है। 

Saturday, August 2, 2014

इंतज़ार

भरोसा दिल पे इतना नहीं करते ,
 प्यार में कभी सोचा नहीं करते।
बहुत खुश रंग  दुनिया के नज़ारे है,
जब तुम साथ हो तो हम कुछ और देखा नहीं करते।।

साँसे चलती रूकती है आने से तेरे
रुकने की  हम परवाह नहीं करते।
तुम मिल जाओ तो और क्या चाहे ,
हम आशिक़ तो थोड़े में भी खुश रहते है।।

जलने से आशियाँ अक्सर बिखर जाते है लोग
हम तो खुद भी जलने से नही डरते हैं।
धड़कन जब तुम हो  हमारे दिल की
हम कुछ भी करने से नहीं मुकरते हैं।।



लिए फिरते है दुनिया के गम हम
और जब यहाँ दर्द ऐ बयान करते है।
फलक से तारे टूट पड़ते है ज़मीन पे
या वो मेरे दर्द को समेटने को यहाँ उतरते है ।।

एहसास अल्फाज़ो से दूर हो जाते है कभी
कभी अल्फाज़ो को नया आयाम हैं देते।
ज़िन्दगी के फलसफे बस तेरी यादो में दिखते है
और तेरे इंतज़ार में सारे पल कटते है ।।

Wednesday, July 16, 2014

यक़ीनन

ज़िंदगी से बढ़कर, यकीनन
कोई बेवफ़ा नहीं होता।

'मौत' वो शह है जो सजा देती, यकीनन
तस्वीर तेरे घर मे।



लिखे नहीं  दो अल्फाज कभी, यकीनन
बेवफाई म्रे गजल लिख जाते हैं

कहते जो वक्त नहीं मेरे लिये, यकीनन
खोजेगें मुझे वक़्त आने पर।

समन्दर पानी से भरा है,  यकीनन
हर कोई फिर भी प्यासा ही जाता। 

Tuesday, July 15, 2014

उदासी

तन्हाइयों में अक्सर ढूंढता हूँ रोशनी,
खुशियो में बद- हवास रहता हूँ।
तेरा मिलना खुशी की बात सही,
तुझ से मिलकर उदास रहता हूँ।



कही ज़िन्दगी मिली तो पूछ लूँगा उससे मैं,
ना तू हो तो क्यों बे-सांस रहता हूँ।
तेरा मिलना खुशी की बात सही,
तुझ से मिलकर उदास रहता हूँ।

ना बढ़ती है दिल्लगी किसी अनजान से,
ना ही मैं किसी के साथ रहता हूँ।
तेरा मिलना खुशी की बात सही,
तुझ से मिलकर उदास रहता हूँ।

Monday, July 14, 2014

Kalam

फिर से कलम उठा ली हमने आज
कुछ पन्नो को काल पोतने का मन हुआ है आज।

सोचता हूँ ज़िन्दगी के अक्स को लफ्ज़ो में उतारू
सोचता हूँ ज़िन्दगी को आज शब्दों के एहसास में उतारू।

उखड़ती सी कुछ साँसों की कहानी आज लिखू
खाली कर दू स्याही का मर्तबान ऐसी कुछ कलम की ज़ुबानी लिखू।


शख़्श दर शख्श बदलती सी तस्वीर उकेर दू पन्नो पे
या दिल की कुछ यादें समेट लू आज पन्नो पे।

तमन्नाओ की उड़ान को कैद कर लू कुछ हर्फ़ में
चमकने दू कुछ बिखरे से शब्दों को ज़िन्दगी के फर्श पे।

क्या लिखू कुछ तो कलम तू ही बता दे
ये सवाल मेरे दिल की दीवारो से हटा दे।

फिर से उम्मीदों की कुछ कहानी सुना दे
कुछ उधड़े से लम्हों को आज एक शामियाने में बनवा दे।

Tuesday, July 1, 2014

मेरी चाहत

लिखना तो चाहता हूँ बहुत सारी दास्ताँ,
कभी अल्फ़ाज़ नहीं मिलते कभी कलम नहीं चलती।

कहना तो चाहता हूँ बहुत अनकही से बातें,
कभी हिम्मत नहीं होती कभी चाहत नहीं होती।

महसूस तो करना चाहता हूँ ज़िन्दगी को मगर,
कही सुनता नहीं कोई कही कहने की ज़रूरत नहीं होती।



निकल जाता हूँ तनहा ही सफर पर मैं,
कही राहे नहीं मिलती कही मंज़िल नहीं होती।

कहकहे भी रखता हूँ ज़हन में अपने,
कभी साथ नहीं मिलता कभी फुरसत नहीं होती।

वक़्त गुज़रता जाता है तेज़ आँखों के अागे से,
कभी साँसे नहीं होती कभी मोहलत नहीं होती।

लिखना तो चाहता हूँ बहुत सारी दास्ताँ,
कभी अल्फ़ाज़ नहीं मिलते कभी कलम नहीं चलती। 

Monday, June 30, 2014

Din Aur Raat

जरुरत है एक दुसरे की दिन और रात,
दिन के बाद शाम से होती मुलाकात।

ढलती हुई किरणे कुछ एहसास दिला जाती है
मुक्कम्मल नहीं है ये जहान बता जाती है।

 यादें कहीं कहकहों की गूंजती है
कभी यु ही कोई अनजान हमसफ़र बनके चल देता है साथ।

जरुरत है एक दुसरे की दिन और रात,
दिन के बाद शाम से होती मुलाकात।

हो जाती है अफ़्सानो से अश्को की बरसातें
कभी दिल में ही रह जाती है कुछ अनकही सी बातें।


फुर्सत नहीं है लोगो को अपनों के लिए भी
तो गैरो की क्या रह जाती है औकात।

जरुरत है एक दुसरे की दिन और रात,
दिन के बाद शाम से होती मुलाकात।

फ़लसफ़े अक्सर सुनता रहता हूँ राह-ऐ-रहगुजर से
कोई अक्सर धुन अजनबी सी सुना जाता है।

लम्हों में सिमट आती है ज़िन्दगी हर रोज़
कैसे बयान करू मैं ये जज्बात।

जरुरत है एक दुसरे की दिन और रात,
दिन के बाद शाम से होती मुलाकात।