Tuesday, July 1, 2014

मेरी चाहत

लिखना तो चाहता हूँ बहुत सारी दास्ताँ,
कभी अल्फ़ाज़ नहीं मिलते कभी कलम नहीं चलती।

कहना तो चाहता हूँ बहुत अनकही से बातें,
कभी हिम्मत नहीं होती कभी चाहत नहीं होती।

महसूस तो करना चाहता हूँ ज़िन्दगी को मगर,
कही सुनता नहीं कोई कही कहने की ज़रूरत नहीं होती।



निकल जाता हूँ तनहा ही सफर पर मैं,
कही राहे नहीं मिलती कही मंज़िल नहीं होती।

कहकहे भी रखता हूँ ज़हन में अपने,
कभी साथ नहीं मिलता कभी फुरसत नहीं होती।

वक़्त गुज़रता जाता है तेज़ आँखों के अागे से,
कभी साँसे नहीं होती कभी मोहलत नहीं होती।

लिखना तो चाहता हूँ बहुत सारी दास्ताँ,
कभी अल्फ़ाज़ नहीं मिलते कभी कलम नहीं चलती। 

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