Monday, July 14, 2014

Kalam

फिर से कलम उठा ली हमने आज
कुछ पन्नो को काल पोतने का मन हुआ है आज।

सोचता हूँ ज़िन्दगी के अक्स को लफ्ज़ो में उतारू
सोचता हूँ ज़िन्दगी को आज शब्दों के एहसास में उतारू।

उखड़ती सी कुछ साँसों की कहानी आज लिखू
खाली कर दू स्याही का मर्तबान ऐसी कुछ कलम की ज़ुबानी लिखू।


शख़्श दर शख्श बदलती सी तस्वीर उकेर दू पन्नो पे
या दिल की कुछ यादें समेट लू आज पन्नो पे।

तमन्नाओ की उड़ान को कैद कर लू कुछ हर्फ़ में
चमकने दू कुछ बिखरे से शब्दों को ज़िन्दगी के फर्श पे।

क्या लिखू कुछ तो कलम तू ही बता दे
ये सवाल मेरे दिल की दीवारो से हटा दे।

फिर से उम्मीदों की कुछ कहानी सुना दे
कुछ उधड़े से लम्हों को आज एक शामियाने में बनवा दे।

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