Monday, December 2, 2013

अक‍सर ये सोचता रहता हूँ के ज़िंदगी जैसे चलती है चलने दो, पर अचानक दिल में आता है क्यूँ जियूं मैं ऐसे जब मैं आगे बढ़कर कुछ बदलाव ला सकता हूँ? क्यूँ ना कुछ ऐसा करूँ के दुनिया याद रखे जब मैं रास्ते से निकलता हूँ लोगो को भागते हुए देखता हूँ सब अपनी अपनी परेशानियों से परेशान है‍‍/ किसी के पास दूसरे इंसान के लिए समय ही नही है/ 
क्यूँ नही है वक्त इंसान के पास इंसान के लिए,
क्यूँ मरता है इंसान झूठी शान के लिए,
हर चेहरा आस् लगाये रहता हैं किसी और से,
क्यूँ नही करता कोई कुछ दूसरे इंसान के लिए/

हर जगह अब शोर ही शोर हैं,
किसी को किसी कि पहचान ही कहा है,
भगवान को मन्दिर में ढूँढता है इंसान,
अपने अन्दर क्यूँ नही ढूँढता भगवान को /

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